चंडीगढ़. मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पसंदीदा बेगम मुमताज महल की याद में आगरा का ताजमहन बनवाया था। चंडीगढ़ के 70 वर्षीय विजय कुमरा ने अपनी दिवंगत पत्नी की याद में संगमरमर से उनकी आदमकद मूर्ति बनवाई है। वह सुबह-शाम, उठते-बैठते मूर्ति से बातें करते हैं। दिनभर उसे निहारते रहते हैं। 15 अगस्त को इनकी दिवंगत पत्नी का जन्मदिन भी है। उसे भी अपने बच्चों के साथ केक काटकर सेलिब्रेट करेंगे। वीणा के साथ बिताए 48 साल विजय को आज भी उतने ही तरोताजा लगते हैं।
विजय की मानें तो वीणा ने उन्हें इन 48 साल में कभी सताया ही नहीं। विजय के गुस्से को हमेशा नजरअंदाज कर दिया। यही वजह है कि विजय आज भी वीणा को मिस नहीं करना चाहते, बल्कि उनके साथ वक्त बिताना चाहते हैं। इसलिए कहते हैं, ये मेरे लिए मूर्ती नहीं मेरी वीणा ही है। वो शरीर छोड़ गई है, उसकी आत्मा तो मेरे साथ ही है। वह मिसाल कायम करना चाहते हैं कि पति-पत्नी के बीच के अटूट रिश्ते में भी बेहद प्यार हो सकता है। पत्नी या पति किसी के जाने के बाद भी उनकी यादों को जिंदा रख सकते हैं।
विजय बताते हैं कि साल 2002 में वह अपनी सभी जिम्मेवारियों से मुक्त हो गए। उसके बाद से अब तक उन्होंने वीणा के साथ देश-विदेश का भ्रमण किया। करीब 10 साल पहले जब दोनों अपनी कार में कन्याकुमारी के लिए निकले तो इस बीच आगरा से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दअुसा पहुंचे। यहां संगमरमर से बनतीं देवी-देवताओं की मूर्तियां देखीं। एक ख्याल तो तभी मन में आ गया था कि अगर वीणा मुझसे पहले इस दुनिया से चल बसी तो उसकी मूर्ति बनवाऊंगा।
दो क्रेन की मदद से लाए घर के फर्स्ट फ्लोर पर
विजय ने बताया कि जुलाई 2012 में उनकी पत्नी को ब्लड कैंसर डिडक्ट हो गया। इस साल 11 मार्च को वह जिंदगी की जंग हारकर चल बसीं। उनकी मौत के बाद 13वीं करके मैं वीणा की कुछ तस्वीरें लेकर अकेला ही गाड़ी उठाकर दअुसा चला गया। वहां कारीगरों को वीणा की तस्वीरें दिखाकर हुबहू बनाने की बात की। सामने से जवाब आया कि हमने तो देवी-देवताओं की मूर्त बनाई हैं। यह हम बना पाएंगे या नहीं, कुछ कह नहीं सकते। आप हमें पत्थर ला दो तो कोशिश कर सकते हैं। बन गई तो अच्छी बात,
वरना पत्थर खराब। विजय ने बताया कि इसके बाद वे मकराना चले गए और 300 फीट गहरी खड्ड में जाकर खुद पत्थर तलाश कर लाए। यह संगमरमर का पत्थर 2400 किलो का था। इसके बाद कारीगरों ने मूर्ति बनाना शुरू किया। इसे बनने में डेढ़ महीना लगा। 23 मई को वह इसे अपने घर ले आए। वीणा के कद 5 फीट 1 इंच की ये मूर्ति में 1100 किलो की है। दो क्रेन की मदद से इसे घर के फर्स्ट फ्लोर पर लाया गया।
मेरी भावनाओं की कोई कीमत नहीं, इसलिए मूर्ति की कीमत मायने नहीं रखती: विजय ने बताया कि मूर्ति बनवाने के लिए उन्होंने पहले मैडम तुसाद गैलरी से भी संपर्क किया था। पर भारत में गर्म तापमान की वजह से मोम की मूर्ति को ज्यादा दिन तक संभाल कर रखने की मुश्किल होती इसलिए उन्होंने मोम की जगह संगमरमर की मूर्ति बनवाई. मोम की मूर्ति बनवाने में करीब 4400 पाउंड का खर्चा आता। इस मूर्ति को बनवाने में आपका कितना खर्च आया? इस पर जवाब आया, भावनाओं की कभी कोई कीमत हो सकती है क्या? ये महज मूर्ती नहीं मेरी वीणा है और मेरी वीणा अनमोल है। वीणा के लिए मेरा प्रेम और भावनाएं अनमोल हैं। इनकी कीमत 10 करोड़ भी हो तो सस्ती है। वह अपनी पत्नी की याद में विजय 5 किताबें लिख चुके हैं। बोले, पहले लोगों ने उनका मजाक भी बनवाया और मूर्ति बनाने पर सवाल भी खड़े किए। पर उन्हें फर्क नहीं पड़ता, इस काम में उनके बच्चों ने मदद की।
मां के जन्मदिन पर लंदन से केक लाएगा बेटा:
विजय के दो बेटे व एक बेटी है। तीनों शादीशुदा हैं। एक बेटा चंडीगढ़ में रहता है और दूसरा इंग्लैंड में। बेटी अमृतसर में रहती है। हर साल वीणा के जन्मदिन पर 7 से 8 केक कटते थे। इस 15 अगस्त को भी इतने ही केक कटेंगे। सभी बच्चे मौजूद रहेंगे। एक बेटा वीणा के जन्मदिन पर खासतौर से लंदन से आ रहा है। शा सवा 6 बजे लंदन से केक लेकर आएगा। 17 को वापस चले जाएगा।
जल्द विजिट करेगी गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की टीम: विजय ने बताया कि जब मूर्ति घर पर आ गई तो मैंने गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स को ईमेल किया। जवाब आया कि हमारे पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। आप मूर्ति की डाइमेंशंस भेजें। इसके बाद मैंने सारी डिटेल भेज दी। 30 मई को उनका असेप्टेंस का ईमेल आ गया, जिसमें कहा कि 12 से 16 हफ्तों में हमारी टीम आपके घर पर विजिट करेगी।
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